
डाकू वाल्मीकि यदि अपने विचार बदलकर धर्म के मार्ग पर चलने लगें तो वह “संत वाल्मीकि” के रूप में हजारों वर्षों तक पूजे जाते हैं !
यदि सिंधिया जी के एक पूर्वज ने यदि धोखा किया तो उनके दसियों पूर्वज देश के लिए बलिदान भी हुए हैं : चाहे वह पानीपत का युद्ध रहा हो, अंग्रेजों के विरुद्ध मराठों के तीन युद्ध रहे हों ।
और फिर उत्तर भारत से अत्याचारी रोहिल्लाओं के आतंक को समाप्त करने और मुगलों को लाल किले के अंदर समेट देने में “महादजी सिंधिया” का योगदान हम कैसे भूल सकते हैं ।
पहले जनसंघ और फिर भाजपा के रूप में देश में सशक्त हिंदूवादी आवाज को स्थापित करने में उनकी दादी “राजमाता विजयाराजे सिंधिया” का योगदान हम सब की स्मृति में अभी ताजा है ।
इसलिए राष्ट्रधर्मियों बिना किसी हिचकिचाहट के, बिना किसी ग्लानि के ज्योतिरादित्य सिंधिया की “घर_वापसी” का स्वागत कीजिए, राष्ट्रवाद के पथ पर ।
क्योंकि राष्ट्रधर्म के अभियान को मजबूत करने के लिए हमें हर सनातनी की घर वापसी करवानी है।
लेखन : बृजेश पाण्डेय

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