️लेकिन बिन बोतल के किसी भी ढक्कन का क्या महत्व है….वो बे काम की हो जाती है.. यहां तक की सडकों पर प्लास्टिक बीनने वालों को भी देखा है ढक्कन की बोतलें सब ले जाते हैं, उन ढक्कनों की कोई कीमत नहीं रह जाती, वो सिर्फ बच्चें के खेलने के काम आती है।
एक ढक्कन का अस्तित्व ही बोतल से है और बोतल का ढक्कन से……खाली पडी बोतल पर कोशिशें की जायें तो दूसरा ढक्कन रख सकते हैं पर ढक्कन के साइज की बोतल ढूंढना पहला तो बेहद मुश्किल है और दूसरा इतनी मेहनत करे कौन?
फेंक दिया जाता है उन ढक्कनों को कचरे के ढेर, नालियों आदि में वो बस तब तक ही जरूरी हैं जब तक उस बोतल में बंद चीज हाथ न आ जाये… अब वो बोतल ढक्कन के हटने पर खुश होकर छलकती है पर उसे कौन समझाये कि ढक्कन के हटते ही वो या तो जमीन पर है या किसी के लिए भी उपलब्ध।
खैर मैं तो ढक्कन हूं, छोटा सा, बेकाम, मैं क्या ही समझूंगा किसी बोतल की भावनाएं और वो बडी सुंदर बोतल क्या समझेगी एक ढत्तन पर बीतती त्रासदी और दर्द… पैरें के नीचे आकर भी बस जिसका आकार बदलता है अस्तित्व नहीं खोता… आग में पडने पक जलता जरूर है पर धुएं में भी रंगत छोड जाता है अपनी।
जब दोबारा भरी जाएदी वो बोतल तब फिर किसी ढक्कन की जिंदगी बर्बाद करने को तलाशा जायेगा….जरूत तक के लिए… खैर मुझे क्या! 🙂
अनुज तिवारी की कलम से🖊

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